Monday, July 12, 2021

श्री शिव अभिलाषाष्टक स्तोत्र


एकं ब्रह्मैवाद्वितीयं समस्तं
सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किञ्चित्।

एको रुद्रो न द्वितीयोsवतस्थे
तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये महेशम् ॥१॥

एकः कर्ता त्वं हि सर्वस्य शम्भो
नाना रूपेष्वेकरूपोsस्यरूपः  ।
यद्वत्प्रत्यस्वर्क  एकोsप्यनेकस्
तस्मान्नान्यं त्वां विनेशं प्रपद्ये ॥२॥

रज्जौ सर्पः शुक्तिकायां च रूप्यं
नीरः पूरस्तन्मृगाख्ये मरीचौ ।
यद्वत्तद्वत् विश्वगेष प्रपञ्चौ,
यस्मिन् ज्ञाते तं प्रपद्ये महेशम् ॥३॥

तोये शैत्यं दाहकत्वं च वह्नौ
तापो भानौ शीत भानौ प्रसादः ।
पुष्पे गन्धो  दुग्धमध्ये च सर्पिः
यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां  प्रपद्ये ॥४॥

शब्दं गृहणास्यश्रवास्त्वं हि जिघ्रेः
घ्राणस्त्वं व्यंघ्रिः आयासि दूरात् ।
व्यक्षः पश्येस्त्वं रसज्ञोऽप्यजिह्वः
कस्त्वां सम्यग् वेत्त्यतस्त्वां  प्रपद्ये ॥५॥

नो वेदस्त्वां ईश साक्षाद्धि  वेद
नो वा विष्णुर्नो विधाताखिलस्य ।
नो योगीन्द्रा नेन्द्र मुख्याश्च देवा
भक्तो वेद त्वामतस्त्वां प्रपद्ये ॥६॥

नो ते गोत्रं नेश जन्मापि नाख्या
नो वा रूपं नैव शीलं न तेजः ।
इत्थं भूतोsपीश्वरस्त्वं  त्रिलोक्याः
सर्वान् कामान् पूरयेस्तद् भजे त्वाम्॥७॥

त्वत्तः सर्वं त्वं हि सर्वं स्मरारे
त्वं गौरीशस्त्वं  च नग्नोsतिशान्तः ।
त्वं वै वृद्धः त्वं युवा त्वं च बालः
तत्किं यत्त्वं नास्यतस्त्वां नतोsस्मि ॥८॥

पूरे एक वर्ष तक यदि १०८ बार पाठ सम्भव न हो सके तो ८ या २८ बार प्रतिदिन पाठ कर मनुष्य अपनी अभिलाषा भगवान् शिव की कृपा से पूर्ण कर सकता है॥



:-श्री शिव अभिलाषाष्टक स्तोत्र की उत्पत्ति :-

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर नामक नगर में एक शिवभक्त रहते थे,उनका नाम था “विश्वानर मुनि”,उनकी पत्नी का नाम था “शुचिष्मति” ,एक दिन मुनि की पत्नी ने अपने पति से भगवान शिव के समान पुत्र की याचना की। मुनि ने पत्नी की श्रेष्ठ भावना को जानकर भगवान शिव की आराधना हेतु काशी को प्रस्थान किया।मुनि काशी पहुँच कर लिंगस्वरूप भगवन शिव की त्रिकाल कठिन पूजा करने लगे।

एक वर्ष की कठिन साधना के बाद उनको शिवलिंग के मध्य शिव स्वरुप आठ वर्ष का बालक दिखायी पड़ा,उस अष्टवर्षीय बालक की उन्होंने “अभिलाषाष्टक स्तोत्र” के द्वारा स्तुति की,स्तुति से प्रसन्न होकर भगवन शिव ने मुनि से वर मांगने को कहा,मुनि ने कहा आप सब जानते हैं,आप इच्छानुसार वर प्रदान करें। भगवान शिव ने मुनि से कहा तुम दोनों की अभिलाषा है कि मैं पुत्र रूप में प्राप्त होउ,तो मैं तुम्हारे यहाँ पुत्र रूप में प्रकट होऊँगा। 

वरदान के फलस्वरूप भगवान शिव शुचिष्मति के गर्भ से पुत्र रूप में प्रकट हुये। मुनि के बालक का नाम ब्रह्मा जी ने गृहपति रखा। नारद जी ने बालक के विषय में बताया कि,बारह वर्ष की अवस्था में इसे बिजली और अग्नि से भय की संभावना है। गृहपति अपने पिता जी से कहे,मैं काशी जाकर मृत्युञ्जय की आराधना करके महाकाल को भी जीत लूँगा,और काशी जाकर शिवलिंग की स्थापना कर काल को जीत लिया। 

           मुनि विश्वानर ने एक वर्ष तक फलाहार,जलाहार एवं वायु का सेवन कर “शिव अभिलाषाष्टक स्तोत्र”के द्वारा पुत्र रत्न की प्राप्ति की। अतः संतान के इच्छुक व्यक्ति एक वर्ष तक नित्य 108 बार आठ श्लोक का पाठ करके शिव सदृश पुत्र की प्राप्ति कर सकते हैं।  

            पुत्र की प्राप्ति पितरों के ऋण से मुक्त करती है,अतएव प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए एक धार्मिक पुत्र की प्राप्ति करें,जो इस अभिलाषाष्टक स्तोत्र के द्वारा पूर्ण हो सकती है,अर्थात पितृ-दोष से मुक्ति प्रदान करने में भी श्री शिव अभिलाषाष्टक स्तोत्र महत्वपूर्ण है।  

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