Saturday, July 20, 2019

भलकत्त हे चंद्र भाल जलकत्त हे नैन ज्वाल




.....................आदि शिव  ॐकार..................

छंद.  चर्चरी

आदि  शिव  ऊँकार, भजन  हरत  पाप  भार,
निरंजन निराकार , ईश्वर नामी,
दायक  नव  निधि द्वार, ओपत महिमा अपार,
सरजन संसार सार, शंकर स्वामि ,
गेहरी शिर वहत गंग, पाप हरत जल तरंग,
उमिया अरधगं अंग केफ आहारी,
सूंदर मूर्ति सम्राथ, हरदम जुग जोड़ी हाथ,       
                                                    
                   भजहु मन भीमनाथ शंकर भारी....1

भलकत्त हे चंद्र भाल जलकत्त हे नैन ज्वाल,
ढळक्तत हे गल विशाल मुंडन माला ,
धर्म भक्त प्रणतपाल, नाम रटत सो निहाल,-
काटत हे फ़ंद काल दीन दयाला, 
शोभे योगी स्वरूप्, सहत ब्रखा, सीत, धुप,
धूर्जटि अनूप भस्म लेपन धारी सुन्दर...........2

घूमत शक्ति घुमंड, भुतनके झुंड़ झुंड ,
भभकत गाजत ब्रह्मांड नाचत भैरु,
करधर त्रिशूल कमंड, राक्षस दल देत दंड,
खेलत शंभु अखंड डहकत डेरुं,
देवन के प्रभुदेव, प्रगट सत्य अप्रमेव,
चतुरानन करत सेव नंदी, स्वारी.............3

सोहत कैलासवास, दिपत गुणपास दास,
रंभा नित करत रास उत्सव राजे ,
निरखत अंध होत नास, तुरत मिटत काल त्रास,
होवे मनकू हुलास,भरमना भाजे,
चरचत चर्चरी छंद, पिंगल सबकु पसंद,
वंदन आनंद होत, वारंवारी, सुंदर.  .................4

हर हर महादेव...


श्री कृष्णा के 24 अवतारों के जाप से लाभ



श्री कृष्णा के 24 अवतारों के जाप से लाभ


श्री कृष्णा के 24 अवतार का नियमित पाठ करने से श्री कृष्णा की विशेष कृपा प्राप्त होती है


छप्पय 


जय जय मीन, बराह, कमठ, नरहरि, बलि, बावन 
परशुराम, रघुवीर, कृष्ण,  कीरति जग पावन।
बुद्ध, कल्कि  अरु व्यास पृथु  हरि, हंस मन्वंतर 
यज्ञ ऋषभ, हयग्रीव, धुर्ववरदैन, धन्वंतर।
बद्रिपति, दत्त, कपिलदेव  सनकादिक करुणा करौ 
चौबीस रूप लीला रुचिर श्रीअग्रदास उर पद धरौ।   


उपरोक्त पंक्तियों में  कृष्णा के २४ अवतारों का वर्णन किया हैं , प्रतिदिन पाठ करने से ठाकुर जी की विशेष कृपा हो जाती हैं। 

शिव रूद्राष्टकम : शिव आराधना का श्रेष्ठ पाठ




 * त्वरित फलदायी है शिव रुद्राष्टक  का पवित्र पाठ.


'ॐ नमः शिवायः'


नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥



रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।


॥  इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥ 


'ॐ नमः शिवायः'

जय राम रमा रमनं समनं




॥ छन्द: ॥
जय राम रमा रमनं समनं। भव ताप भयाकुल पाहि जनम॥
अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो॥


धुन:
 राजा राम, राजा राम, सीता राम,सीता राम।

दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरी महा महि भूरी रुजा॥
रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं॥
मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज दिवाकर तेज अनी॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

मनजात किरात निपात किए। मृग लोग कुभोग सरेन हिए॥
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे। बिषया बन पावँर भूली परे॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

बहु रोग बियोगन्हि लोग हए। भवदंघ्री निरादर के फल ए॥
भव सिन्धु अगाध परे नर ते। पद पंकज प्रेम न जे करते॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

अति दीन मलीन दुखी नितहीं। जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं॥
अवलंब भवंत कथा जिन्ह के। प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

नहीं राग न लोभ न मान मदा। तिन्ह के सम बैभव वा बिपदा॥
एहि ते तव सेवक होत मुदा। मुनि त्यागत जोग भरोस सदा॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ। पड़ पंकज सेवत सुद्ध हिएँ॥
सम मानि निरादर आदरही। सब संत सुखी बिचरंति मही॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

मुनि मानस पंकज भृंग भजे। रघुबीर महा रंधीर अजे॥
तव नाम जपामि नमामि हरी। भव रोग महागद मान अरी॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

गुण सील कृपा परमायतनं। प्रणमामि निरंतर श्रीरमनं॥
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं। महिपाल बिलोकय दीन जनं॥

सीता राम राम राम सीता राम राम राम 

॥ दोहा: ॥
बार बार बर मागऊँ हरषी देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग॥


बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास॥


बोलिये सिया वर राम चंद्र भगवन की जय 
उमा पति महादेव की जय 

राधा वर कृष्ण चंद्र की जय